राजेश सोनी
सूरजपुर- स्मृति, निर्णय या संचार सभी के लिये मस्तिष्क में अलग-अलग क्षेत्र होते हैं, जो विभिन्न कार्यों के लिए उत्तरदायी होते है । जब मस्तिष्क की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती है,तो वह क्षेत्र सामान्य रूप से अपने कार्यों को पूरा नहीं कर पाता है, तब यह सोच, व्यवहार और भावनाओं को प्रभावित करती है।जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है मनोभ्रंश यानि डिमेंशिया होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती है| डिमेंशिया की शुरुआत धीरे धीरे कई अवस्थाओं से होती है| मनोभ्रंश के रोग के लक्षण समय बीतने के साथ गंभीर होते जाते है।यह रोग किसी भी उम्र के लोगो को हो सकता है लेकिन आमतौर पर यह वृद्ध लोगो में अधिक होता है | इसकी जानकारी देते हुए राज्य मानसिक चिकित्सालय, सेंदरी के चिकित्सक एवं मनोवैज्ञानिक डां दिनेश कुमार लहरे ने बताया, “डिमेंशिया का अर्थ मंदबुद्धि से नहीं है,और न ही यह पागलपन है। बुढ़ापे में डिमेंशिया की समस्या ज्यादा होती है|इस अवस्था में रोगी को हमेशा अनजाना भय लगारहता है,अकेलेपन में गंभीर मनोदशा से गुजरतें है तथा डिमेंशिया की वजह से कभी कभी ऐसे रोगी डिप्रेशन में भी चले जाते है, जिसके लिये उन्हे व्यवहारिक तौर पर परिवारजनो के साथ की और लगाव की आवश्यकता होती है।“मनोभ्रंश एक ऐसा मस्तिष्क रोग है जिससे इंसान की सोचने और याद रखने की क्षमता धीरे धीरे कम होती जाती है| इससे व्यक्ति के दैनिक कार्य काफी हद तक प्रभावित होते है| याददाश्त की कमी के कारण रोगी यह तक भी भूल जाते हैं कि वह किस शहर में हैं, या समय और तारिख क्याहै|कभी कभी बात करते हुए उन्हें सही शब्द नहीं सूझता. व्यक्ति यहाँ तक अपने बच्चे का नाम तक भी भूल जाते है और गंभीर अवस्था में वह अपना नाम भी भूल जाता है| अन्य लक्षणों में भावनात्मक समस्याएं, भाषा संबंधी कठिनाइयों, और याददाशत की कमजोर शामिल है। डिमेंशिया के लक्षण भिन्न हो सकते हैं लेकिन इनमे से कुछ लक्षणों के आधार पर डिमेंशिया रोग माना जा सकता है|संतुलन की समस्याएं,धीरे-धीरे याददाशत का कम होना जैसे जरूरी चीजें भूल जाना,निर्णय लेने की क्षमता कम होना,समस्याओं को सुलझाने में कठिनाई,बेचैनी,सवालो को दोहराना,भाषा संबंधी कठिनाइयां,ध्यान केंद्रित करने या ध्यान देने की क्षमता कम हो जाना, और खाने या निगलने में परेशानी| रोजाना के काम को करने में कठिनाई महसूस करना,छोटी-छोटी बात पर बौखला जाना या रोना, भ्रम और विचलन भी इस रोग के लक्षण है |आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में इससे बचाव के लिए थैरेपी, रोगी के साथ परिवारजनो की काउंसलिंग व अन्य उपाय किए जाते है।मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) दिमाग की क्षमता का निरंतर कम होना है। हर प्रकार की बौद्धिक क्षमता वाले लोगों को मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) हो सकता है। हालांकि यह 65 की आयु से अधिक वाले लोगों में ज्यादा सामान्य है, यह 45 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों को भी प्रभावित कर सकता है।