बात बेबाक…सरकारी शिक्षा……..है जिसको कोई भी ठोकर मारकर चला जाता है..?


चंद्र शेखर शर्मा कवर्धा
सरकारी शिक्षा रास्ते में पड़ी हुई एक कुतिया है, जिसको कोई भी ठोकर मारकर चला जाता है। जो भी मंत्री, अधिकारी आते हैं बजाय इसके कि वह शिक्षा व्यवस्था को ठीक करें, शिक्षकों को जिम्मेदार मानकर बात शुरू करते है। हर आदमी सरकारी शिक्षा के खिलाफ वक्तव्य देकर चला जाता है, मगर उसके लिए कुछ नहीं करता।” श्री लाल शुक्ल जी की बातें 56 बरस गुजरने के बाद भी छत्तीसगढ़ के मौसम को जानते समझते भी स्कूल खोलने और बन्द करने के बदलते तुगलकी निर्णयों के चलती प्रासंगिक लगती है । सालों से स्कूल खोलने बन्द करने की पुरातन नियमो को बदल कर मई की तमतमाती गर्मी में स्कूल खोलने का निर्णय और गर्मी के बहाने पुराने फिर ढर्रे में आना वह भी ऐसे युग मे जब आधुनिक टेक्नोलॉजी के चलते महीनों पहले ही हर घण्टे की मौसम की जानकारी मिल जाती है बावजूद स्कूल खोलने के तुगलकी निर्णय और बंद करने की बेबसी एसी कमरो में बैठ कर शिक्षा निति बनाने और निर्णय करते नए नए आदेश जारी करने वाले बुद्धिजीवी व जनप्रतिनिधियो की कार्यशैली समझ से परे है । शिक्षा को लेकर साल दर साल प्रयोग करने की नीति ने शिक्षा व्यवस्था का कबाड़ा कर के रख दिया है । शिक्षा कोई जनमघुट्टी या पोलियो की दवा नहीं जो बच्चे का मुँह खोला और डाल दी दो बूँद शिक्षा की और बच्चो को मिल गई शिक्षा । यहां पदस्थ होने वाला हर आफ़सर अपना नया प्रयोग करके चलता बनता है । शिक्षा विभाग देश की जीती जागती सबसे बड़ी प्रयोगशाला बन कर रह गया है । एसी गाड़ी में सफर कर आफिस पहुंच एसी कमरे में मिनरल वाटर की ठंडी बोतलों के बीच बनाई जाने वाली प्रायोगिक योजनाओं को झेले पालक बच्चे और गुरुजी इसीलिए श्रीलाल शुक्ल जी की लाइने “सरकारी शिक्षा रास्ते में पड़ी हुई एक कुतिया है, जिसको कोई भी ठोकर मारकर चला जाता है। ” आज भी प्रसांगिक लगती है ।
और अंत में :-
जो चाँद था साहब, वो कच्चे मकान में छिप गया, खूबसूरती का अवार्ड, शहर की अमीरज़ादी ले गई