विशेष टिप्पणी…सन्दर्भ……आतंक का पर्याय बना युवक और पुलिस की भूमिका….

पैसा खुदा तो नही पर ख़ुदा से कम भी नही यह है पुलिस का मूलमंत्र…तो कैसे रहे आम जनता सुरक्षित….? सत्ताधारी कांग्रेस पर भी सवाल और आक्रोश….

राजेश सोनी द्वारा प्रस्तुत आलेख
आतंक के पर्याय बने युवक को आखिरकार पुलिस ने बुधवार को देशी कट्टे के साथ पकड़ कर जेल भेज दिया है. बस स्टैंड का रहने वाला यह युवक शहर के लिए लगभग नासूर बन गया है लेकिन नासूर बनाने में समाज के साथ साथ वह पुलिस जिम्मेदार है जिसके कंधे पर सूरजपुर शहर में शांति व्यवस्था बहाल रखने की जवाबदारी है. लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नही है कि आज जिले में जितनी खत्म ओर नकारा पुलिस है उससे खत्म और नकारा पुलिस कभी रही नही है. इसकी बानगी आप ऐसे समझ सकते है कि यह वही युवक है जिसने आज से करीब डेढ़ वर्ष पूर्व उस टीआई को थाने में जो आज प्रतापपुर में मुस्तकबिल है घुस कर न केवल जुतियाया था बल्कि बुरी तरह वर्दी आदि भी फाड़ दी थी. हथियारों से लैस थाने पुलिस तब मूकदर्शक बनी हुई थी. किसी की हिम्मत न तो रोकने की हुई और न मुक्कमल कार्रवाई की हुई. तो जाहिर है हौसला बढ़ना ही है. कप्तान की देखिए कि इस शर्मशार घटना में कोई ठोस कार्रवाई करने की बजाए बेचारे पीटे गए टीआई को यहां से हटाकर अपनी इज्जत बचाई.शहर के लोग तो इस युवक और उसके परिवार की हद जानते है पर जहाँ तक सवाल पुलिस का है तो जब पुलिस का मूल मंत्र यह हो कि पैसा खुदा तो नही पर खुदा से कम भी नही है, की रिश्वतखोरी में कोई सीमा न रखे तो यह हश्र होना ही है. बताते है कि युवक के परिवार का कारोबार कुछ ऐसा है कि पुलिस का न केवल सरंक्षण जरूरी है बल्कि उसके एवज में पुलिस प्रतिमाह ओर गाहे बगाहे उसके सामने याचक की मुद्रा में खड़ी रहती है तो भला कैसे कार्यवाही करें…..? आतंक का आलम देखिये की टाकीज में घुस कर मारपीट,नवापारा में मारपीट, पत्रकारों के साथ एक नही दो दो बार सुपारी लेकर मारपीट.गोंडवाना के जिला सुप्रीमो से मारपीट और पुराने बस स्टैंड में तो आम आदमी का आना जाना मुश्किल है कब किस पर पिल पड़े और कब किसकी इज्जत उतार दे कोई भरोसा नही. कई बार ऐसे इज्जतदारो की इज्जत उतार चुका है जो अपनी इज्जत के खातिर खामोश रहने में ही भलाई समझ कर किनारा कर लिए है.बस स्टैंड थाने के चंद कदम दूरी पर है पर क्या मजाल है कि पुलिस का कोई खोफ हो..! अभी हाल में स्टेडियम में खेल के दौरान महगवां के खिलाड़ियों को चाकू से हमला कर आहत कर दिया था रिपोट हुई पुलिस मामूली धारा लगा कर उस कर्तव्य को पूरा की जिस टुकड़े पर याचक बनी रहती है इसी के परिणाम स्वरूप युवक दूसरे दिन उन युवको की तलाश में कट्टा लेकर घूमता रहा जिनसे उसका विवाद हुआ था.बुधवार को पुलिस की कुछ जमीर जगी है जब उसे आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार किया है पर सवाल यह है कि क्या वह इतना भारी हो गया है कि पुलिस उस पर अपना दबाव नही बना पा रही है या उसमे पुलिस का खौफ पैदा हो …? अदालत से तत्काल छूट जाना भी कही न कही पुलिस की कमजोरी है कि वह केस को अदालत में इतना कमजोर करके ले जाती है कि वहाँ उसे राहत मिल जाती है. अगर यही हाल रहा पुलिस तमाम मामलों में अपनी जमीर बेचे कोई शिकायत नही है लेकिन ऐसे गुंडागर्दी के मामले में जमीर बेचती रही तो जब शहर के लोगो का गुस्सा फटेगा तो मुश्किल होगी. इस बात का ख्याल पुलिस के साथ साथ कांग्रेस के उन शरमाएदारो को भी रखना होगा जिनके हाथ मे शहर की बागडोर जनता ने सौपी है. जनता ने शहर की बागडोर केवल लकदक के लिए नही बल्कि मुक्कमल व्यवस्था के लिए सौपी है|