देवलोक की वाणी… जिले की पुलिस तो बेमिसाल थी. आज भी है और शायद हमेशा…कलंकित बेमिसाल बनी रहेगी. कर्मकांडों से आबरू तार-तार हो जाये…

राजेश सोनी
देवलोक की वाणी. जिले की पुलिस तो बेमिसाल थी आज भी है और शायद हमेशा यूँ ही उल्टे सीधे काम कर कलंकित, तमाम तरह के अवैध कार्यो के लिये बेमिसाल बनी रहेगी. अपने कर्मकांडों से अपनी आबरू कई बार तार-तार कर चुकी है वर्दीधारियों ने चेकिंग के नाम पर किसी को पीटकर मार डालना, तो वही पैसे के लिये प्रडताडित करना फलस्वरुप पटवारी को आत्म हत्या करना पडा, फर्जी मामले बनाना, ब्लैकमेल करना आम बात हो गई है कमाई के मामले में तो लगता है जैसे अपनी जिले की पुलिस को कोई विशेष ट्रेनिंग दी जाती है.शहर के हर कोने से लेकर गली नुक्कड़ तक और हर बाजार चैराहे से लेकर ठेले खोमचे तक से हमारी पुलिस को कमाई ढूंढ निकालने में महारत हासिल है. अपराधी वर्दीधारी अपराधियों संग सांठ गांठ कर नये आयाम गढे जा रहे है. सबका साथ सबका विकास के स्लोगन को चरितार्थ करने में जी जान से जुटी हुई है. हालाकि विभाग समय समय पर अपने कर्मकांडों से साबित करती रही है कि वो वाकई में निर्भीक है और सबके नाक के नीचे ही कांड दर कांड किये चले जाना आसान काम तो नही है. अपने कांड और उसको छुपाने के लिये कौन सी प्लान सही रहेगी. सभी प्लान प्रत्येक समय तैयार रहते है किस समय किस अवैध कारोबार में नामजद और कुछ को फरार कर छोडे रखना. सच में बहुत काबिलियत है पुलिस की. सत्य को झूठ बना दे और झूठ को सत्य या फिर किसी पर फर्जी अपराध दर्ज कर दे या फिर बड़े गुनाहगारों को पाक साफ कर दे, कई अनेकानेक उदाहरण है कानून के रक्षकों की जो कानून की रक्षा के साथ आम लोगो की सुरक्षा की शपथ लेते है. बहुरूपिया की तरह रोज रोज चेहरे बदलती खाखी की साख खुद खाखीधारी मिट्टी में मिलाने में लगे है. एक तरफ महिला शक्तिकरण की बात तो वही अग्रसर जैसे तमाम नॉटंकी देखने सुनने को मिल जाते है आम जनता की सुरक्षा के लिए तत्पर रहने वाले गुंडों माफियाओं अवैध कारोबारियों की साठगांठ से मालामाल हो रहे.लोकतंत्र में सिर्फ तंत्र की बचा है जो आम लोगो का खून चूसने में लगा हुआ है जबकि तंत्र में कई कलंकित चेहरे है जितना बड़ा कांड उतना बड़ा इनाम उपहार से शोभित मान किया जा रहा, गुंडे बदमाशो पर लगाम लगाने की मूल कर्तव्य को भूल कर जिम्मेदार उनकी दलाली में लगे हुए है और बहुत बड़ी समाज सेवा का ढिंढोरा पीटकर खुद की पीठ थपथपा रही है आज संविधान की शपथ लेकर संविधान को मिट्टी में मिलने वाले रोज चेहरा पर चेहरा बदलने लगे है.

‘शपथ’ ….

मैं एक बार फिर से शपथ लेता हूँ कि “कुल्कर्म कर रहा हूँ और आगे भी करते ही रहूँगा” :

वो’ ‘माल’ मंगाते रहेंगे
लोग करते रहेंगे खपत
कुछ दिनों तक ही तो चलनी है ये सनक
बिगड़ता क्या है ले लेने से शपथ…!!
पहले ले ले शपथ फिर लेना लपक – लपक
ले शपथ.. ले शपथ… ले शपथ …

झूठ बोले केंकड़ा काटे..